इस माह की विशेषताएँ
- महीने भर के रोज़े (उपवास) रखना
- रात में तरावीह की नमाज़ पढना
- कुरान तिलावत (पारायण) करना
- एतेकाफ़ बैठना, यानी गाँव और लोगों की अभ्युन्नती व कल्याण के लिये अल्लाह से दुआ (प्रार्थना) करते हुवे मौन व्रत रखना
- ज़कात देना
- दान करना
- अल्लाह का धन्यवाद अदा करना। अल्लाह का धन्यवाद अदा करते हुवे इस महीने के गुजरने के बाद शव्वाल की पहली तिथि को ईद उल-फ़ित्र मनाते हैं।
इत्यादी को प्रमुख माना जाता है। कुल मिलाकार पुण्य कार्य करने को प्राधान्यता दी जाती है। इसी लिये इस माह को नेकियों और इबादतों का महीना यानी पुण्य और उपासना का माह माना जाता है।[3]
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