Sunday, 14 May 2023

Ek bar Sab Ko padna chahiye

    अपनी मृत्यु और अपनों       

        डरावनी लगती है।

                     बाकी तो मौत को enjoy 

                        ही करता है आदमी ...


          थोड़ा समय निकाल कर अंत तक पू पढ़ना 


               मौत के स्वाद का चटखारे लेता मनुष्य ...

            थोड़ा कड़वा लिखा है पर मन का लिखा है ...


            मौत से प्यार नहीं , मौत तो हमारा स्वाद है.....


                     बकरे का, 

                      गाय का,

                      भेंस का,

                      ऊँट का,

                      सुअर,

                      हिरण का,

                      तीतर का, 

                      मुर्गे का, 

                      हलाल का, 

               बिना हलाल का, 

              ताजा बकरे का, 

                     भुना हुआ,

                     छोटी मछली, 

                     बड़ी मछली, 

 हल्की आंच पर सिका हुआ। 

        न जाने कितने बल्कि अनगिनत स्वाद हैं

                              मौत के।

                   क्योंकि मौत किसी और की, 

                    और स्वाद हमारा.

               स्वाद से कारोबार बन गई मौत। 

                मुर्गी पालन, मछली पालन, बकरी                        पालन, पोल्ट्री फार्म्स।

          नाम *पालन* और मक़सद *हत्या*❗ 

             स्लाटर हाउस तक खोल दिये। वो भी                            ऑफिशियल। 

            गली गली में खुले नान वेज रेस्टॉरेंट, 

        मौत का कारोबार नहीं तो और क्या हैं ? 

      मौत से प्यार और उसका कारोबार इसलिए 

        क्योंकि मौत हमारी नही है।

        जो हमारी तरह बोल नही सकते,

         अभिव्यक्त नही कर सकते, 

      अपनी सुरक्षा स्वयं करने में समर्थ नहीं हैं.

      उनकी असहायता को हमने अपना बल

                       कैसे मान लिया ?

           कैसे मान लिया कि उनमें भावनाएं                                 नहीं होतीं ?

             या उनकी आहें नहीं निकलतीं ?

डाइनिंग टेबल पर हड्डियां नोचते बाप बच्चों

 को सीख देते है, बेटा कभी किसी का दिल

 नही दुखाना ! किसी की आहें मत लेना 

! किसी की आंख में तुम्हारी वजह 

से आंसू नहीं आना चाहिए ! 

बच्चों में झुठे संस्कार डालते बाप को

, अपने हाथ मे वो हडडी दिखाई नही देती,

 जो इससे पहले एक शरीर थी,

 जिसके अंदर इससे पहले एक आत्मा थी,

 उसकी भी एक मां थी ...??

जिसे काटा गया होगा ? 

जो कराहा होगा ? 

जो तड़पा होगा ? 

जिसकी आहें निकली होंगी ? 

जिसने बद्दुआ भी दी होगी ?

कैसे मान लिया कि जब जब  धरती पर अत्याचार बढ़ेंगे तो भगवान सिर्फ तुम इंसानों की रक्षा के लिए अवतार लेंगे  ..❓

क्या मूक जानवर उस परमपिता परमेश्वर की संतान नहीं हैं .❓

क्या उस ईश्वर को उनकी रक्षा की चिंता नहीं है  ..❓

धर्म की आड़ में उस परमपिता के नाम पर अपने स्वाद के लिए कभी ईद पर बकरे काटते हो, कभी दुर्गा मां या भैरव बाबा के सामने बकरे की बली चढ़ाते हो। कहीं तुम अपने स्वाद के लिए मछली का भोग लगाते हो ।

कभी सोचा ...!!!

क्या ईश्वर का स्वाद होता है ? ....क्या है उनका भोजन ?

किसे ठग रहे हो ?

भगवान को ? 

अल्लाह को ?  

जीसस को?

या खुद को 

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